Poem

यादों की दोपहरी चढ़ आयी द्वारे | Kathamala - read, write and publish story, poem for free in hindi, english, bengali

यादों की दोपहरी चढ़ आयी द्वारे

3 years ago

0

गंध भरे महूबे मन छू गए सकारे 
यादों की दोपहरी चढ़ आयी द्वारे 
  
गूँज उठी सुधियों नूतन नमराइयाँ 
कूँक रहे कण्ठ आज दर्द की रुबाइयाँ   
डूब गए गागर में सागर रतनारे 
गंध भरे महूबे मन छू गए सकारे   
  
झूमती हवाओं ने गीत रचे सौरभ के 
किरणों ने तार कसे अनुपम सुर सरगम के 
ऐसे में पहचाना स्वर कोई पुकारे
गंध भरे महूबे मन छू गए सकारे   
  
शिखर चढ़े यौवन की प्यास बहुत बढ़ गयी 
पूनम का कलश लिए चाँदनी उतर गयी 
प्राणों ने दर्द पिए लाज के सहारे
गंध भरे महूबे मन छू गए सकारे   
  
गंध भरे महूबे मन छू गए सकारे 
यादों की दोपहरी चढ़ आयी द्वारे 

Comments

To comment on content, please Login!

Comments & Reviews (0)

No comments yet :(